loader
प्रेम का सारांश ‘मदन माधुरी’

प्रेम का सारांश ‘मदन माधुरी’

December 3, 2018, 10:45 PM

कविवर प्रदीप कुमार ‘खालिस’ द्वारा रचित काव्य संग्रह ‘मदन माधुरी’ प्रेम में रची-बसी एक अति मनमोहक और माधुर्य रचना है। कवि ने अपने इस काव्य संग्रह में प्रेम को आधार बनाकर उसको अध्यात्म से जोड़ने का अनूठा एवं सफल प्रयास किया है। रचनाकार की यह कृति वास्तव में आत्मसात करने वाली है। 
    लेखक ने अपनी काव्य रचना के द्वारा यह साबित किया है कि सारा ब्रह्माण्ड भी जिस शब्द के लिए छोटा है जिसमें से होकर गुजरते हैं पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, फल-फूल, पक्षी-कीट तथा पतंगे, कयानात की हर जीवित, मूर्त और अमूर्त वस्तु और वह शब्द हैं प्रेम, जो सिर्फ देता है लेता कुछ नहीं, पुस्तक पढ़ने पर यूं तो प्रारम्भ में लिखी श्रीमती ऊषा अग्रवाल की चार पंक्तियों में पूरी पुस्तक का सारांश और कवि के प्रयास की दिशा दिखाई पड़ती है कि ‘‘विघटित हो रहे में घोलते है जीवन संगीत’’ प्रणय गीतों पर यह पंक्तियां आनन्दमय है। कवि की इस काव्य रचना में प्रेम, 
अध्यात्म, ज्ञान, कर्म और भक्ति का अद्भुत सौन्दर्य मिलता है। कवि द्वारा रचित विद्या लहरी, माधूर्य लहरी, सौन्दर्य लहरी की हर पंक्ति में प्रेम और अध्यात्म का उन्मुक्त संदेश दिखाई पड़ता है। 
    कवि ने काव्य रचना के माध्यम से साबित किया है कि प्रेम संसार का मूल है। आज जितनी परिभाषायें प्रेम की है। उतने तत्व तो विज्ञान में नहीं होगे। कवि ने इतनी सुन्दरता से प्रेम की शक्ति का बोध कराया है वह नीचे पंक्तियों में हैं जो अद्भुत है :-
    जीवन में सर्पो के विष को, गले में धारण किया करो।
    मदन माधुरी के छन्दों का, रसपान निरन्तर किया करो। 
    इससे बढ़िया प्रस्तुतीकरण शायद सम्भव नहीं है। कवि बोध कराता है कि 
    पंच तत्व से बना शरीर, क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा
    काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह में, फंसे दिखाई देते है वीर।   
    उपर्युक्त पंक्तियां कवि की संवेदना और सामाजिक अवलोकन का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। प्रेम और संवेदना  में नारी श्रंगार का बोध कराते हुये कवि यह बताना नहीं भूला कि 
    करते देव जिसकी आरती, तीन शक्ति से बनी भारती।
    वही कल्याणी वही दुर्गा, महिषासुर को वही तारती।।
    उपर्युक्त पंक्तियां अद्भुत संयोजन और कवि की काव्य क्षमता का प्रदर्शन करती है। काव्य संग्रह का शीर्षक तो एकबारगी राधा कृष्ण के प्रणय जीवन की सहसा याद दिलाता है लेकिन रचनाकार ने शंकर पार्वती को सांकेतिक रूप में लेकर मधुर ओर न भूलने वाली पंक्तियों की रचना कर डाली है। यह साबित करने में सफल रही है कि व्यक्ति द्वारा स्वयं का अध्ययन ही अध्यात्म है। स्वयं में बदलाव है अध्यात्म। देवत्व का धारण है अध्यात्म। आत्मा का बोध है अध्यात्म। शाश्वत प्रेम है अध्यात्म। 
    इस काव्य संग्रह के रचनाकार कवि प्रदीप ‘कृष्ण’ अपनी विनम्र शैली के जाने और पहचाने जाते हैं। वह काव्य कल्पना के माध्यम से सामाजिक समरस्ता का जो प्रयास कर रहे हैं वह अनूठा है। कवि की रचना ‘मदन माधुरी’ को पढ़कर प्रभु के प्रेम सरोबर में डूबकर परमानन्द को प्राप्त करने की अनोखी कृति है। इस काव्य रचना का सुधि पाठकों द्वारा अवलोकन एक अन्यन्त्र संसार में विचरण का बोध अवश्य करायेगी।

- प्रदीप कुमार सिंह
समाजसेवी एवं लेखक, लखनऊ
मोबाइल : 9839423719

Share Now


Your Comments!

महत्वपूर्ण सूचना -भारत सरकार की नई आईटी पॉलिसी के तहत किसी भी विषय/ व्यक्ति विशेष, समुदाय, धर्म तथा देश के विरुद्ध आपत्तिजनक टिप्पणी दंडनीय अपराध है। अत: इस फोरम में भेजे गए किसी भी टिप्पणी की जिम्मेदारी पूर्णत: लेखक की होगी।