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परम्पराओं को पुनर्स्थापित कराने की आवश्यकता जिससे भविष्य की पीढ़ी के लिए हो सके समावेषित

परम्पराओं को पुनर्स्थापित कराने की आवश्यकता जिससे भविष्य की पीढ़ी के लिए हो सके समावेषित

December 14, 2021, 07:12 PM

आजादी के अमृत महोत्सव की श्रृखला में मात्रृ शक्ति पर आयोजित हुई गोष्ठी

लखनऊ : एक एनजीओ की संचालिका डॉ पूजा श्रीवास्तव द्वारा आजादी के 75वे वर्ष का अमृत महोत्सव आयोजित किया गया। जिसमें जनता को जागरूक किया जा रहा है। इस आजादी को पाने में मातृशक्ति व उनके वीर सपूतों द्वारा किये गये बलिदान को याद किया गया। कार्यक्रम का प्रारम्भ, दीप प्रज्वलन व भारतमाता के चित्र पर माल्यार्पण कर किया गया। कार्यक्रम में 250 से अधिक लोगो ने लखनऊ के मेट्रोसिटी काम्प्लेक्स के टावर 9 के नीचे हाल में एकत्रित होकर भाग लिया। स्वतंत्रता के लिये वीर सपूतों मंगल पांडेय व रानी लक्ष्मीबाई आदि ने 1857 में ही अंग्रेज शासकों के विरुद्ध आजादी के लिये विगुल फूका था तथा आजादी के पश्चात , सीमा सुरक्षा व दुश्मन देशो से लडाई में डटकर मुकाबला करते हुए अनेक बीर - सपूतों ने बलिदान दिये, उनमें से कुछ अभिभावको व माता - पिता की उपस्थिति में उन्हे सम्मानित किया गया। इसके साथ ही 4 से 10 वर्ष तथा 10 से 15 वर्ष के वच्चो को भी सामिल किया गया, जिसमें आजादी के गीत व पैंटिंग का प्रतिस्पर्धा का कार्यक्रम आयोजित किया गया। बच्चो ने भी बढ- चढ कर भाग लिया तथा प्रथम, द्वतीय और तीसरे स्थान पाने वालो को पुरस्कृत किया गया।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि  राज किशोर ने अपने उद्बोधन में  1857 में मंगल पांडेय द्वारा आजादी के लिये दिये गये बलिदान से उठी चिंगारी, व झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिह, राजगुरु व असफाक उल्ला, सुभाषचंद बोस, नानाजी देशमुख , तत्या तोपे, गंगाधर तिलक, राज गोपाचार्य, महात्मा गांधी आदि के योगदान पर विस्तृत प्रकाश डाला। 

कार्यक्रम के वक्ता प्रोफ. भरत राज सिह ने अपने सम्बोधन में कहा कि नारी शक्ति शब्द के स्थान पर हमें मातृशक्ति अथवा देवीशक्ति शब्द से उद्बोधित कर अपनी 2000 वर्षों से चली आ रही परम्परा व संस्कृति को पुर्स्थापित करना चाहिए, जिससे हमारी वर्तमान व आनेवाली पीढी जाने की हमारी मातृ शक्ति को देव्तुल्य सम्मान दिया गया है। इसलिये प्रत्येक माताओं-बहनों के नाम के आगे देवी को जोड़ा जाता था न कि किसी अन्य उपनाम से। डॉ सिह ने मंगल पांडेय, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, चंद्रशेखर आजाद आदि के जीवन पर विस्तृत प्रकाश डाला जिन्होंने 1857 से 1947 में मिली आजादी तक अपनी 20 से 23 वर्ष की उम्र में प्राणों की आहुति दी। उन्होंने कहा हमें अपनी परम्पराओं को पुनर्स्थापित कराने की आवश्यकता है जिससे नई शिक्षा नीति में जोड़कर भविष्य की पीढी में जानकारी हेतु समावेषित हो सके। अन्य वक्ताओं में अध्यक्ष राजेंद्र श्रीवास्तव, डॉ उषा वाजपेयी, डॉ सुरेश वाजपेयी, प्रोफ. माल्विका, विग्रे. उमेश चोपडा, कई अन्य विद्वान लोगो ने अपने - अपने विचार रखे। डॉ पूजा ने भारतमाता के चित्र के सम्मुख आरती गान किया और वंदे मातरम गीत प्रस्तुत किया।अंत में सभी अतिथियों, आगंतुको का आभार व्यक्त करते हुये धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया।

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