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यूपी में दूसरे चरण की आठ सीटों के लिए थमा प्रचार, क्या कहते हैं समीकरण, दो मौजूदा सांसद भी आमने-सामन

यूपी में दूसरे चरण की आठ सीटों के लिए थमा प्रचार, क्या कहते हैं समीकरण, दो मौजूदा सांसद भी आमने-सामन

April 24, 2024, 09:44 PM

यूपी में दूसरे चरण की आठ सीटों पर शुक्रवार 26 अप्रैल को होने वाले चुनाव के लिए प्रचार का शोर बुधवार की शाम थम गया। इस चरण में अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा में वोटिंग होगी।

2019 में इन आठ में से सात सीटों मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ व मथुरा में भाजपा को जीत मिली थी। अमरोहा सीट पर सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी दानिश अली जीते थे। इस बार सभी सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला है। बुलंदशहर में दो मौजूदा सांसद आमने-सामने हैं। एनडीए की तरफ से भाजपा और रालोद के प्रत्याशी मैदान में हैं। इंडिया गठबंधन की ओर से सपा और कांग्रेस ने प्रत्याशी उतारे हैं। सभी सीटों पर बसपा ने प्रत्याशी उतारकर मुकाबले को रोचक और त्रिकोणीय बना दिया है। आठों सीटों पर कुल 91 प्रत्याशी मैदान में हैं।

चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार मतदान खत्म होने से 48 घंटे पहले राजनैतिक दलों और उनके प्रत्याशियों व प्रतिनिधियों द्वारा निर्वाचन क्षेत्र में किये जाने वाले चुनाव प्रचार संबंधी सम्पूर्ण गतिविधियां समाप्त हो जाती हैं। इस दौरान केवल घर घर जनसंपर्क किया जा सकता है। कोई रैली-सभा नहीं हो सकती है। सभी राजनैतिक दलों के बाहरी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को निर्वाचन क्षेत्र में मौजूदगी भी प्रतिबंधित कर दी जाती है।

अमरोहा
अमरोहा दूसरे चरण की इकलौती सीट है जिस पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। यहां से सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी दानिश अली ने जीत हासिल की थी। इस बार दानिश अली बसपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए और उसी के टिकट पर फिर से मैदान में हैं। उनका मुकाबला भाजपा के कंवर सिंह तंवर से है। बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी मुजाहिद हुसैन को उतारकर दानिश अली की राह कठिन बनाने की तैयारी कर रखी है। यही कारण है कि दानिश के निशाने पर लगातार बसपा है। दानिश का कहना है कि भाजपा को जिताने के लिए बसपा काम कर रही है। अगर बसपा की रणनीति कामयाब हुई तो भले उसका प्रत्याशी न जीते लेकिन दानिश अली को दोबारा सांसद बनाने में रोड़ा जरूर अटका सकती है।

मेरठ
मेरठ में भाजपा ने रामायण के राम यानी अरुण गोविल को हराकर इस सीट को हॉट सीट बना दिया है। शुरुआती कुछ परेशानियों और अंतर्विरोधों के बावजूद भाजपा इस सीट पर अपने को सुरक्षित मान रही है। लेकिन मुकाबला इतना आसान भी नहीं है। यह सीट त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी है। भाजपा ने तीन बार से लगातार सांसद बन रहे राजेंद्र अग्रवाल का टिकट काटकर अरुण गोविल को उतारा है। पिछली बार यहां भाजपा को केवल पांच हजार वोटों से जीत मिली थी। साढ़े नौ लाख दलित-मुस्लिम वोट यहां निर्णायक भूमिका में हैं। ऐसे में सपा ने दलित प्रत्याशी सुनीता वर्मा को उतार कर इन वोटों को अपने पाले में करने की कोशिश की है। बसपा ने देवव्रत त्यागी को उतार कर राजूपतों की बीजेपी से नाराजगी को भुनाने की कोशिश की है।

बागपत
1977 से यानी करीब 47 साल बाद पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की इस राजनीतिक विरासत वाली बागपत लोकसभा सीट से उनके परिवार का कोई सदस्य इस बार प्रत्याशी नहीं है। इस बार एक-दूसरे के राजनीतिक विरोधी भाजपा और रालोद के नेता एक ही प्रत्याशी को जिताने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। फिलहाल, इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला है। भाजपा गठबंधन में अपने खाते में सीट होने के बाद भी जयंत चौधरी ने खुद चुनाव न लड़कर पार्टी के पुराने सिपहसालार डॉ. राजकुमार सांगवान को चुनावी मैदान में उतारकर सभी को चौका दिया। सपा-कांग्रेस गठबंधन ने गाजियाबाद निवासी अमरपाल शर्मा को टिकट दिया है। वे साहिबाबाद विधानसभा से विधायक रह चुके हैं।

बसपा ने यहां एडवोकेट प्रवीण बंसल को चुनाव मैदान में उतारा है। वे दिल्ली की रोहतास नगर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। यह चुनाव जहां रालोद-भाजपा गठबंधन का भविष्य तय करेगा, वहीं चौधरी परिवार के पुराने सिपहसालार के लिए भी यह अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। दलित-मुसलिम समीकरण, जाट और किसान राजनीति के साथ-साथ यहां भाजपा-रालोद गठबंधन की भी परीक्षा है।

गाजियाबाद
राष्ट्रीय राजधानी से सटा गाजियाबाद लोकसभा क्षेत्र राम मंदिर आंदोलन के बाद भाजपा का मजबूत गढ़ साबित हुआ है। पिछले आठ चुनाव में सात बार भाजपा यहां जीती है। 2009 में भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने पहली बार लोकसभा पहुंचने के लिए गाजियाबाद से ही चुनाव लड़ना चुना था। वीके सिंह पिछले दो चुनाव में कमल के चुनाव चिह्न से लाखों मतों से जीतकर संसद पहुंचे। भाजपा ने इस बार वीके सिंह की जगह स्थानीय नेता और शहर विधायक अतुल गर्ग को टिकट दिया।

अतुल के सामने वीके सिंह के पांच लाख रिकॉर्ड मतों की जीत के कीर्तिमान से आगे निकलने की चुनौती है तो इंडिया गठबंधन से कांग्रेस प्रत्याशी डॉली शर्मा भाजपा के दुर्ग को भेदने की पुरजोर कोशिश कर रही हैं। डॉली शर्मा पिछली बार भी चुनाव लड़ी थीं मगर तीसरे नंबर पर रही थीं। बसपा ने पहले पंजाबी समाज के प्रत्याशी को टिकट दिया था। मगर बाद में क्षत्रियों की कथित नाराजगी का लाभ लेने के इरादे से बसपा ने नंद किशोर पुंडीर को मैदान में उतार दिया। नंदकिशोर पुंडीर मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे हैं। बसपा काडर वोट और नुक्कड़ सभाओं पर ज्यादा फोकस कर रही है।

गौतमबुद्धनगर
कभी प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के लिए अभिशिप्त रहा नोएडा क्षेत्र भाजपा के शासनकाल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सबसे प्रिय केंद्रों में से एक है। वह यहां के विकास पर भी लगातार निगाह रखते हुए उसकी समीक्षा करते हैं। वर्तमान में यहां भाजपा का वर्चस्व है। भाजपा प्रत्याशी डॉ. महेश शर्मा इस सीट से लगातार दो बार जीत दर्ज करा चुके हैं और जीत की हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में हैं।

सपा ने गुर्जर, बसपा ने क्षत्रिय प्रत्याशी उतारा इस सीट पर जीत हासिल करने के लिए सपा ने गुर्जर कार्ड खेला है। सपा ने डॉ. महेन्द्र नागर को अपना प्रत्याशी बनाया है। जबकि बसपा ने इस बार यहां पर क्षत्रिय प्रत्याशी उतारकर क्षत्रियों को साधने का प्रयास किया है। इस बार उन्होंने राजेन्द्र सोलंकी को मैदान में उतारा है। एयरपोर्ट का श्रेय लेने की होड़ जेवर मे बन रहे एशिया के सबसे बड़े नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के निर्माण का क्रेडिट लेने के लिए भी राजनीतिक दलों के बीच होड़ लगी है।

बुलंदशहर
बुलंदशहर में दो मौजूदा सांसदों के बीच मुकाबला है। बीजेपी ने मौजूदा सांसद भोला सिंह और बसपा ने नगीना से सांसद गिरीश चंद्र जाटव को यहां से टिकट दिया है। वहीं, बसपा और कांग्रेस दोनों ने ही पूर्व प्रत्याशियों का टिकट काटकर नए प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है। डॉ. भोला सिंह 2014 से सांसद हैं। 2019 में भोला सिंह ने 6,81,321 वोट हासिल कर सीट जीती थी। कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी शिवराम वाल्मिकी को बनाया है।

वर्तमान में वह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य हैं। पूर्व में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव भी रह चुके हैं। बसपा ने बिजनौर की नगीना सीट से सांसद गिरीश चन्द्र जाटव को उतारा है। बुलंदशहर में 64 फीसदी आबादी हिंदू और करीब 35 फीसदी आबादी मुस्लिम समुदाय की है। हिंदुओं में दलित, लोध राजपूत, ब्राह्मण, ठाकुर, जाट प्रत्येक जाति के लोग 10 से 15 प्रतिशत हैं। यादव, सिख, कायस्थ, जैन काफी कम हैं।

मथुरा
मथुरा लोकसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। भाजपा की ओर से तीसरी बार हेमा मालिनी मैदान में हैं। बसपा के सुरेश सिंह और इंडिया गठबंधन से कांग्रेस ने मुकेश धनगर को उतारा है। यहां बसपा और कांग्रेस ही नहीं भाजपा प्रत्याशी हेमा मालिनी भी पार्टी के विभिषणों से परेशान हैं। बसपा ने अंतिम समय में यहां प्रत्याशी बदल दिया है। पहले कमलकांत उपमन्यु को टिकट दिया था। मंगलवार को ही उपमन्यु ने बसपा भी छोड़ दी। उपमन्यु का टिकट काटने से यहां का ब्राह्मण वर्ग नाराज हो गया है क्योंकि ब्राह्मणों पर उनका अच्छा प्रभाव है।

वहीं भाजपा की बात करें तो उसने भले ही आरएलडी से चुनावी समझौता किया हो पर स्थानीय स्तर पर भाजपा के जिले के कर्णधार आरएलडी से तालमेल बनाना तो दूर उन्हें कार्यक्रम की सूचना तक नही दे रहे हैं। इस पर हेमा मालिनी भी नाराजगी प्रकट कर चुकी हैं। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की सभा में जिस प्रकार आरएलडी के प्रदेश उपाध्यक्ष नरेन्द्र सिंह की उपेक्षा हुई और उन्हें मंच में नही बुलाया गया। नरेन्द्र सिंह 2019 में हेमा के खिलाफ आरएलडी से चुनाव लड़ चुके हैं।

कांग्रेस की हालत तो और भी खराब है। बाक्सर ब्रजेन्द्र सिंह के भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस सपा गठबंधन ने मुकेश धनगर को चुनाव मैदान में उतार तो दिया पर इस दल के कुछ लोग ही उनको पराजित देखने के लिए एक प्रकार से गांठ बांध चुके हैं। एक बड़े नेता ने तो एक बार यह कहा था कि उस ''चिरकुट'' की सभा में वे नही जाएंगे।

अलीगढ़
अलीगढ़ में भाजपा के ब्राह्मण प्रत्याशी सतीश कुमार गौतम जीत की हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में उतरे हैं। बसपा ने भगवा खेमा छोड़कर हाथी पर सवार हुए ब्राह्मण हितेन्द्र कुमार उर्फ बंटी उपाध्याय पर दांव लगाया है। बसपा ने पहले यहां गुफरान नूर को टिकट दिया था, बाद में बंटी उपाध्याय को मैदान में उतारकर चाल बदली है। सपा-कांग्रेस गठबंधन ने पूर्व सांसद चौधरी बिजेन्द्र सिंह को मैदान में उतारा है।

जाट बिरादरी के बिजेन्द्र सिंह 2004 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीते थे। यहां पर सर्वाधिक मुस्लिम वोट लगभग साढ़े तीन लाख हैं। लगभग तीन लाख ब्राह्मण, सवा दो लाख जाट, दो लाख जाटव व दो लाख ठाकुर के अलावा वैश्य, लोधी राजपूत, बघेल व यादव बिरादरी का वोट चुनावी समीकरण बदलने की हैसियत रखते हैं। तीनों प्रत्याशियों के बीच वोटों के बंटवारे में मुस्लिम मतों की हिस्सेदारी यहां सबसे अहम मानी जा रही है।

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